Tuesday, August 26, 2014

छोटा गाँव , विदेशी कंपनी और भोलू काका |

आजाद गुरुकुल लघु कथा

 ( कॉपीराइट : आजाद गुरुकुल ,लेखक : आर्य शुभम वर्मा ) :-

क छोटा सा गाँव था वहां सभी लोग ख़ुशी ख़ुशी रहते थे | आदमी बाहर धूप में मेहनत का काम करते थे जैसे बेल जोतना , खेती , सामान उठाना इत्यादि क्योंकि वो शारीरिक रूप से मजबूत थे और औरते घर पर घर का काम तथा समाज परिवार को संभालना, सामाजिक ढांचे को मजबूत रखना बच्चों को संस्कार देना क्योंकि महिलायें मानसिक रूप से मजबूत थीं | दोनों ने ही अपने कार्यों का चयन स्वयं किया था | अतः सारा गाँव बहुत खुश रहता था | सभी मिल जुल कर रहते थे सभी के पास एक दुसरे के लिए बहुत समय रहता था तथा एक एक महीने तक शादियों में नाचते गाते थे सभी त्यौहार मिलकर मनाते थे |एक दुसरे की समाज मदद करता था | सभी सब के सुख दुःख में शरीक होते थे | तभी कुछ कंपनी वाले वहां आये उन्होंने सोचा यदि ये इसी तरह रहते रहे तो हमारा सामान कौन खरीदेगा जैसे जीन्स , स्कर्ट , लिपस्टिक पाउडर क्रीम , उन्होंने सोचा महिलाओं को ये सब खरीदने के लिए कैंसे राजी किया जाए क्योंकि वही फैसला करतीं हैं घर में क्या लाना है , पति सारा कमाया धन उन्ही के हाथों में रख देते हैं | अब इन कंपनी वालों ने कहा सीधे सीधे तो हम इन्हें भड़का नहीं पायेंगे इनकी संस्कृति छोड़ने तो एक काम करते हैं | उन्होंने समाज सेवा और लड़कियों की सेवा के नाम से एक संस्थान बनाया और गाँव में भेजा| सभी भोले भाले गाँव वाले उनकी बातों में आ गए उन्हें लगा हमारी माताओं बहनों के लिए कुछ अच्छा करेंगे उन्होंने ने भी उनके साथ रैलियां निकाली उन्हें पैसा दिया जगह दी | अब जब कंपनी वालों की पहुच घर तक हो गयी तो उन्होंने महिलाओं को जो खुश थी यह बताना शुरू किया तुम पर अत्याचार हो रहे हैं जब वो पूछती कहाँ तो दुसरे गाँव का उदाहरण दे देते थे | किसी एक जगह से जली हुई महिला की तस्वीरे लाकर दहेज़ हत्या के नाम से इतनी बार बतायी जाती के हर पुरुष यही कर रहा है और कभी बार बार उन्हें बलात्कार जो कभी कही हुआ होता उसी के विषय में बताया जाता और बोला जाता सदियों से पुरुष समाज ने तुम पर अत्याचार किये हैं अभी भी सेहन कर रही हो देखो विदेश की महिलाएं कितनी आज़ाद हैं यह बोलकर उन्हें सिगरेट पीती हुयी अमेरिकी मॉडल्स का फोटो तथा छोटे कपड़ो में मेकअप करी हुई अंग्रेजी औरतों की तस्वीरे दिखा कर कहा जाता ये है आजादी | फिर बताया जाता क्यों तुम्हारी शादी माँ बाप करें हमारे यहाँ तो लड़की खुद चुनती है |और बार बार यह कहा जाता के पुरुष बाहर सारे गलत काम करते हैं तुम्हे भी हक़ होना चाहिए जो चाहो वो करने का | फिर अंत में बताते तुम्हे दबाने के लिए ये बुरखा , साडी , सलवार , दुपट्टा , पल्ला पहनाया जाता है ताकि तुम उनकी गुलाम रहो | बहार आओ इस सोच से | धीरे धीरे उन पर असर होने लगा उनने पुचा कैंसे तो कहा गया विद्रोह करो | महिलाओं ने वैसा ही किया | तब उन्होंने उन्हें छोटे कपडे बेचने शुरू कर दिए जो और ज्यादा आज़ाद वो सिगरेट भी पीने लगी और सुन्दर दिखने के लिए लिपस्टिक , पाउडर , क्रीम सब सामान कंपनी का बिकने लगा | अब उन्होंने पुरुषों को कहा ये महिलाऐं आगे बाद रही हैं तुम गंवार हो युवाओं को फिल्मे दिखाई जिसमे हीरो विदेशी कपडे पहनता था लडको से कहा लड़कियां उन्हें ही पसंद करती हैं जो ऐसा रहता है तुम तो गाँव चाप हो लडको ने भी उनका सामान खरीदना शुरू कर दिया | अब उन्होंने लडको को अश्लील फिल्मे दिखाना शुरू की जिससे लड़के लड़की बिगड़ने लगे तो उनकी कई सारी गोलियों का और सामानों का इस्तेमाल होने लगा | अब तक विदेशी कंपनियों की भरमार आ गयी थी अब उन्होंने इसमें इन्ही के जो सबसे ज्यादा चमचे होते थे उन्हें रखना शुरू कर दिया और जो पैसा सैलरी के तौर पर उन्हें दिया जाता उससे उन्हें टीवी , कंप्यूटर , फ्रिज दिला दिए जाते और पैसा वापस के लिए जाता बाकी नशे में और जुए में और सिनेमा और महंगे कपड़ो में खर्च हो जाता मतलब मजदुर भी मुफ्त पैसा भी वापस कंपनी पर | अब गाँव जो खुशहाल था वहां बलात्कार बढ़ गए , चोरी होने लगी , अनाज की कमी , हत्या ,लूट व्यभिचार सभी को लगता था बस पैसा कमाना ही सब कुछ है जिस पर ज्यादा पैसा वोही गाँव का राजा | सब किसी भी तरीके से पैसा कमाने लगे | गाँव के भोलू दादा सब समझते थे जब उन्होंने इसका विरोध किया तो कंपनी ने मीडिया को पैसे देकर उनके खिलाफ पेपर और टीवी पर कई खबरे चलवाई जिसमे भोलू चाचा को खाप पंचायत , धर्म के ठेकेदार और कट्टरपंथी , विकास विरोधी ठहरा दिया गया और एक दिन सभी गाँव वालों ने भोलू काका को गाँव से निकाल दिया | और विदेशी कंपनी के विकास के खेल में फंस कर सभी गुलाम बन गए अब कोई रिश्ता नहीं बचा , कोई परिवार नहीं , कोई समाज नहीं , कोई धर्म नहीं | इसे विदेशी कंपनी ने नाम दिया कम्युनिज्म अब हम सब मानव हो गए हैं कार्ल मार्क्स जैसा चाहते थे अब हम में कोई भेद भाव नहीं जबकि सारा पैसा कंपनी पर था सभी गाँव वाले यहाँ तक के औरते भी दिन रात उनकी कंपनी में बेल की तरह जूते रहते और महीने के आखिरी में जो पैसा मिलता वो कंपनी की बैंक औए किश्ते चुकाने में चला जाता किसी को समझ नहीं आ रहा था के इतना विकास होने के बाद भी इतना ह्यूमन राईट होने के बाद भी कोई खुश क्यों नहीं है पहले ऐंसा क्या था जो चला गया ......................क्या आपको पता है पहले ऐंसा क्या था जो चला गया ???? कही भोलू काका तो नहीं ........
पता चले तो मुझे भी बताइए


आर्य शुभम वर्मा
आजाद गुरुकुल
theshubhamhindi@gmail.com

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